Friday, April 3, 2015

लॉस्ट दोस्त



लॉस्ट दोस्त

एक वक़्त था जब कटिग  चाय में भी
खुशियाँ मिल जाती थी

आज तो महंगी में भी मज़ा क्यों नहीं आता

कभी एक वडा पाव  भी बाँट कर खा लेते थे

आज फाइव स्टार का खाना भी क्यों नहीं भाता

कभी लोकल ट्रैन में भी मस्ती कर लिया करते थे
और आज लाखो की गाड़ी में भी मज़ा क्यों नहीं आता

कभी दस रुपए की पॉकेट मनी से  आखों में चमक आ जाती थी
आज फाइव फिगर सॅलरी भी है फिर भी अधूरी सी लगती है

जिनके साथ बिताये पल कभी आम लगते थे
आज वही कमीने ख़ास हो गए

कभी जगड लिया करते थे छोटी छोटी बातो पे
आज उनको फेसबुक पे फॉलो करते है

वह फ्लर्टिंग बंकिंग डेटिंग "भाई भाभी की नज़र से देख"
ऐसा कहकर करते सेटिंग

वह फ़ोन पर लॉन्ग नाईट बातें
वह फर्स्ट क्रश की स्लीपलेस रातें

एक अरसा हुआ कॉलेज स्कूल देखे हुए
आज सालो हो गए उन सालो से मिले हुए

जब ज़िंदगी को करीब से देखता हूँ तो सोचता हु ,
इसमें से ख़ुशी क्यों लॉस्ट है

जब पिच मुद कर देखा तो फलसफा समाज आया के ज़िंदगी का जश्न तो
वह पुराने दोस्त है

आज मंज़र कुछ ऐसा है की हम ही गेस्ट है हम ही होस्ट है

बस खुशिया मिसिंग है बाकि सब ऑलमोस्ट है

बस ज़िंदगी के इस ख़ूबसूरत से मोड़ पर मेरा वह ओल्ड दोस्त लॉस्ट है

मिलिंद मेहता 

No comments:

Post a Comment