Monday, January 17, 2011

वह् पल


वह् पल

लोटा दो वह् पल जब दुनिया को ठेंगा दिखाते थे
कोलेज के गेट से लोगो पर हसी उडाते थे

जब सोचते थे एक दिन इस दुनीया पर राज करेंगे
अपने अरमानो के सफर का आगाझ करेंगे

आसमान पे होगा सर और दुनीया को रखेंगे कदमो के नीचे
तेझ तर्रार बाईक पे बेठ्कर, कर देंगे झमाने को पिछे

जब बाहर नीकले तो पता चला कि हम भी उसी भीड का हिस्सा है
जैसी थी उनकी कहानी कुछ एसा हि हमारा किस्सा है

लग रहा था जिंदगी वही फिल्म फिर से दिखा रही हो जैसे
सब कुछ है बील्कुल एक सा बद्ले से किरदार हो जैसे

जाने क्युं आज फिर से वह मंझर हमे याद आते है
जिस गेट से हसते थे वह आज हमे रूलाते है

जाने क्युं खुबसूरत पल इतनी जल्दी चले जाते है
और आज भी वह पल आंखे नम कर जाते है

लेखक मिलिंद महेता

Saturday, January 15, 2011

मेरी एक छोटी सी मुलाकात


मेरी एक छोटी सी मुलाकात

वह ना तो दोस्त थी
और ना ही थी वह दुश्मन

फिर भी न जाने क्युं उसकी
याद में तड्पे हे यह मन

मुझे यह तो पता था कि
सब से अजीब यह कहानी है

जीस पल के सपने देखे थे सालो से
वह घडी अगले पल ही जानी है

वह हकिकत थी या तो ख्वाब
वो तो में जानता नही

मै तो एक मामुली सा आशीक हुं
बेवफाइ में मानता नही

मे चुप था वह खामोश थी
उसकी नझर भी कितनी निर्दोष थी

उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी थी
या फिर आने वाले तुफान कि आहट सी थी

हम मिले झरूर थे सिर्फ पल दो पल के लीए
इसे हे कह लो मेरी प्रणयकथा

अगले कुछ पल में क्या होने वाला था
सपने में भी मुजे नही था पता

मैने हाथ बढाया उसका हाथ थामने के लिए
कुछ ही पल बाकी थे दिल मिलने के लिए

हवा भी कुछ अलग थी मोसम कुछ खुशगवार था
वह शर्मा रही थी और उसका घुंघट उड्ने को बेकरा था

उतने में एक गाडी आइ, जिसमे वह चढ गई
और एक आखरी बार मैरी नझर उससे लड गई

वह तो चली गई में वहीं खडा रहा
बिते कुछ पलो को कि यादें संझोता रहा

मे आज भी उस पल मे शीद्द्त से खो जाता हुं
होठो पे ला कर मुस्कुराहट भीतर से रो जाता हुं

उमीद है मुझे हवा फिर से करवट लेगी
उसी स्टेशन पर एक बार फिर से हमारी बात होगी

कुछ पलो के लीए ही सही
फिर से एक बार मेरी छोटी सी मुलाकात होगी

लेखक मिलिंद महेता

Thursday, January 13, 2011

क्युं नही आते है


क्युं नही आते है

जभी मह्सूस करते है तनहाई में, ,
आपको हम ढुंढते है अपनी ही परछाइ में
हाथ बढातॅ है हम इसी ख्वाइश में,
दुआ करते मिलने की हर गुझारीश में
दिल भर आता तो रो लेते है कभी,
रोना अच्छा है बरसती बारीश में

छ चलते चलते जब हम रुक जाते है,
वो गुझरे हुए पल हमे क्युं बुलाते है

जो लोग हम से युं दूर चले जाते है,
जब भी बुलाते है उनको वो वापस क्युं नही आते है

लेखक मिलिंद महेता

Wednesday, January 12, 2011

काश

काश
बस युंही पल दो पल का रिश्ता नही होता
दीलो की कहानी में कोई धोका नही होता
जो ना होते यहां तो में भी ना नही होता
किस्मत कि बातें ये सारी सिर्फ किस्मत जाने
हम तो है दीवाने हम सिर्फ दिल की ही माने
हम केहते ही जाते जो तु्मने टोका ना होता
हम थम भी जाते काश तुमने रोका तो होता
प्यार हम भी कर लेते बस तुमने पुछा तो होता
काश मैने भी तुम को उस दिन रोका ना होता
जो कुछ भी कहना था तुम्हे कहने दीया होता
इस प्रेम कहानी का का चर्चा गलीओ में ना होता
ओर आज तुं ना जल रही होती, में दफ्न ना होता
काश के कोम के कुछ लोगो ने हमें नकारा ना होता
तो शायद इस झमाने मे हमारे इश्क का फसाना होता
लेखक मिलिंद महेता

Tuesday, January 11, 2011

तेरी याद


तेरी याद

तुम याद आते हो,हमको रुलाते हो
हमको रूलाकर तुम, कहां चले जाते हो
तुम याद आते हो,हमको सताते हो
हमको सताकर तुम, कहां चले जाते हो
तुम याद आते हो,हमको हसाते हो
हमको हसाकर तुम,पल में रूला जाते हो
तुम क्या चले गए जिंदगी बदल गई
मुझको युं बुलाकर तुम कहां चली गई
तुम कहीं भी चले जाओ,हमें याद आते हो
......हमको रूलाकर.....हमको सताकर
हमको हसाकर...
काश आप ये पढ पाते

लेखक मिलिंद महेता