मेरी एक छोटी सी मुलाकात
वह ना तो दोस्त थी
और ना ही थी वह दुश्मन
फिर भी न जाने क्युं उसकी
याद में तड्पे हे यह मन
मुझे यह तो पता था कि
सब से अजीब यह कहानी है
जीस पल के सपने देखे थे सालो से
वह घडी अगले पल ही जानी है
वह हकिकत थी या तो ख्वाब
वो तो में जानता नही
मै तो एक मामुली सा आशीक हुं
बेवफाइ में मानता नही
मे चुप था वह खामोश थी
उसकी नझर भी कितनी निर्दोष थी
उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट सी थी
या फिर आने वाले तुफान कि आहट सी थी
हम मिले झरूर थे सिर्फ पल दो पल के लीए
इसे हे कह लो मेरी प्रणयकथा
अगले कुछ पल में क्या होने वाला था
सपने में भी मुजे नही था पता
मैने हाथ बढाया उसका हाथ थामने के लिए
कुछ ही पल बाकी थे दिल मिलने के लिए
हवा भी कुछ अलग थी मोसम कुछ खुशगवार था
वह शर्मा रही थी और उसका घुंघट उड्ने को बेकरा था
उतने में एक गाडी आइ, जिसमे वह चढ गई
और एक आखरी बार मैरी नझर उससे लड गई
वह तो चली गई में वहीं खडा रहा
बिते कुछ पलो को कि यादें संझोता रहा
मे आज भी उस पल मे शीद्द्त से खो जाता हुं
होठो पे ला कर मुस्कुराहट भीतर से रो जाता हुं
उमीद है मुझे हवा फिर से करवट लेगी
उसी स्टेशन पर एक बार फिर से हमारी बात होगी
कुछ पलो के लीए ही सही
फिर से एक बार मेरी छोटी सी मुलाकात होगी
लेखक मिलिंद महेता
No comments:
Post a Comment